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इन 4 तरीकों से बैंक वसूलते हैं ज्यादा ब्याज! RBI को पता चला तो लगा दी सबकी क्लास
परिचय
व्यक्तिगत ऋण (Personal Loan) भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि यह तत्काल वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सबसे आसान और तेज़ तरीका है। बिना किसी संपार्श्विक (Collateral) के यह ऋण उपलब्ध होता है, लेकिन इसकी ब्याज दरें (Interest Rates) काफी अधिक होती हैं। हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कई बैंकों और एनबीएफसी (NBFC) के ऊपर सख्त निगरानी शुरू की है क्योंकि ग्राहकों से अनावश्यक रूप से अतिरिक्त ब्याज वसूला जा रहा था।
यहाँ हम उन 4 तरीकों के बारे में बात करेंगे जिनसे बैंक और एनबीएफसी उपभोक्ताओं से अधिक ब्याज वसूलते हैं। साथ ही, जानेंगे कि RBI ने इस पर क्या कार्रवाई की और ग्राहक कैसे सतर्क रह सकते हैं।
बैंक व्यक्तिगत ऋण के प्रोसेसिंग के लिए एक शुल्क लेते हैं जिसे प्रोसेसिंग फीस कहते हैं। यह शुल्क अक्सर 1% से 3% के बीच होता है। हालांकि, कुछ बैंक और एनबीएफसी इसमें छुपे हुए शुल्क (Hidden Charges) जोड़ देते हैं, जैसे:
इन शुल्कों के बारे में ग्राहक को स्पष्ट रूप से नहीं बताया जाता और यह सीधे उनके ऋण राशि से काट लिया जाता है। इससे ग्राहकों को कम राशि मिलती है, जबकि ऋण की ईएमआई पूरी ऋण राशि के अनुसार ही चुकानी पड़ती है।
RBI की प्रतिक्रिया
RBI ने निर्देश दिया है कि बैंकों और एनबीएफसी को सभी शुल्कों को पारदर्शी (Transparent) रूप से खुलासा करना होगा। प्रोसेसिंग फीस और अन्य शुल्क स्पष्ट रूप से ग्राहक को पहले ही बताने होंगे।
बैंक और एनबीएफसी अक्सर ब्याज दर को ‘Flat Rate’ के रूप में दिखाते हैं, जो उपभोक्ताओं के लिए भ्रम पैदा करता है। फ्लैट रेट पर ब्याज गणना एक ही आधार राशि पर होती है, जबकि वास्तविकता में, ईएमआई के साथ मूलधन (Principal) कम होता जाता है और ब्याज घटता है।
कैसे बैंक फायदा उठाते हैं?
उदाहरण के लिए, 10% की ‘Flat Rate’ और 10% की ‘Reducing Balance’ दर के बीच बड़ा अंतर होता है। फ्लैट रेट की तुलना में, रिड्यूसिंग बैलेंस पद्धति में ब्याज कम होता है। बैंक फ्लैट रेट का प्रचार करते हैं क्योंकि यह सुनने में कम लगता है, लेकिन ग्राहक को अधिक ब्याज चुकाना पड़ता है।
RBI की प्रतिक्रिया
RBI ने निर्देश दिया है कि बैंकों को ‘Flat Rate’ की जगह ‘Annual Percentage Rate (APR)’ का खुलासा करना होगा ताकि उपभोक्ता सही ब्याज दर समझ सकें।
यदि ग्राहक अपना ऋण जल्दी चुकाना चाहता है, तो बैंक और एनबीएफसी उस पर भारी पेनाल्टी लगाते हैं। इसे प्री-पेमेंट या फोरक्लोजर शुल्क कहा जाता है।
कैसे बैंक फायदा उठाते हैं?
अगर आपने 5 साल के लिए ऋण लिया है और 2 साल के अंदर इसे चुकाना चाहते हैं, तो बैंक आपसे 2-4% तक का फोरक्लोजर शुल्क वसूल सकते हैं। इससे ग्राहक का ऋण चुकाने का लाभ कम हो जाता है।
RBI की प्रतिक्रिया
RBI ने स्पष्ट किया है कि व्यक्तिगत ऋण पर फोरक्लोजर शुल्क अवैध है, खासकर जब ऋण ‘फ्लोटिंग रेट’ पर हो। बैंक अब केवल निश्चित दर (Fixed Rate) वाले ऋणों पर ही यह शुल्क वसूल सकते हैं, और ग्राहकों को पहले से इसकी जानकारी देनी होगी।
कई बैंक व्यक्तिगत ऋण के साथ बीमा पॉलिसी खरीदने का दबाव डालते हैं। इन पॉलिसियों के लिए अतिरिक्त शुल्क ग्राहक से वसूला जाता है, जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं होती।
कैसे बैंक फायदा उठाते हैं?
बैंक और एनबीएफसी ‘Loan Protection Insurance’ के नाम पर बीमा पॉलिसी की बिक्री करते हैं और इसका प्रीमियम ऋण राशि में जोड़ देते हैं। इससे ग्राहक को पूरी जानकारी दिए बिना, उसे उच्च ईएमआई का भुगतान करना पड़ता है।
RBI की प्रतिक्रिया
RBI ने बैंकों को आदेश दिया है कि बीमा पॉलिसी को ऋण के साथ अनिवार्य रूप से न जोड़ा जाए। बैंक केवल ग्राहक की अनुमति से ही बीमा पॉलिसी का प्रीमियम जोड़ सकते हैं।
RBI की सख्ती के बाद भी बैंक और एनबीएफसी नए-नए तरीकों से ब्याज वसूलने की कोशिश करते हैं। ऐसे में ग्राहकों को सतर्क रहना चाहिए। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए जा रहे हैं:
बैंक और एनबीएफसी द्वारा अनावश्यक शुल्क वसूलना एक आम समस्या बन गई है, लेकिन RBI अब इन पर सख्त निगरानी कर रहा है। ग्राहक को हमेशा सतर्क रहना चाहिए और सभी नियमों और शर्तों (Terms & Conditions) को समझकर ही लोन लेना चाहिए। पारदर्शिता और सही जानकारी प्राप्त करने का अधिकार हर ग्राहक का है।
यदि आपको बैंक या एनबीएफसी के किसी भी अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ता है, तो आप RBI के ग्राहक शिकायत पोर्टल (CMS – Complaint Management System) पर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इससे बैंक पर जुर्माना लगाया जा सकता है और आपको इंसाफ मिल सकता है।
“सोच-समझ कर लोन लें, ब्याज और शुल्क का पूरा हिसाब जानें, ताकि बैंक आपको न चूना लगा सके।”